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Event Time .
February 9, 2025
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4:00 pm
1969. 2h 12m
इस दिन हमनें सत्यजित राय की सबसे लोकप्रिय, सबसे संगीतमय, बच्चों से लेकर बड़ों तक की सबसे पसंदीदा फ़िल्म–
‘गूपी गाइन बाघा बाइन’
The Adventures of Goopy and Bagha
यह बंगला भाषा की फ़िल्म पूरी दुनिया में पहली बार विशेष रूप से वसुंधरा सदस्यों ने हिंदी subtitles के साथ देखी। इसका मूल रहा कि भाषा का पूरा आस्वाद साथी सदस्यों तक पहुँच पाया!
इस फ़िल्म का यह हिन्दी subtitles वाला संस्करण वसुंधरा की अपनी पहल है! दुनिया में पहली बार!
देश- विदेश में अनेकानेक पुरस्कार और कई फ़िल्म उत्सवों में सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का खिताब जीतने वाली यह फ़िल्म सत्यजित राय ने मूल रूप से बच्चों के लिए बनाई थी। लेकिन सभी वर्ग के दर्शकों के बीच यह असाधारण रूप से लोकप्रिय रही। अकेले कोलकाता सिनेमा घरों में यह पूरे एक वर्ष तक चली! बंगाल में तो आज भी बच्चा- बच्चा इसके गीतों को जानता है! हिंदी में इस फ़िल्म के आधार पर एक animated फ़िल्म भी बनी है जिसे गुलज़ार ने लिखा था! पर मूल बंगला सत्यजित राय की फ़िल्म की बात कुछ और ही है!
साठ के दशक में इस फ़िल्म से पहले सत्यजित राय ‘पथेर पांचाली त्रयी’, ‘जलसाघर’, ‘ महानगर’ और ‘चारुलता’ जैसी गंभीर फिल्में बनाकर पर्याप्त ख्याति अर्जित कर चुके थे, जब लोगों और विशेष रूप से उनके बेटे संदीप राय ने उन्हें एक हल्की फुल्की बाल सुलभ फ़िल्म बनाने का आग्रह किया, जिसके परिणामस्वरूप 1969 में उन्होंने अपने दादा उपेन्द्रकिशोर चौधरी की कहानी को GGBG का रूप दिया।
यह सत्यजित राय की सबसे लोकप्रिय, सबसे सर्वप्रिय फ़िल्म है जिसे आप जितनी बार चाहे देख सकते हैं!
इस फ़िल्म की सबसे खास बात यह है कि इसकी पटकथा, इसके गीत, उनका संगीत, वेशभूषा, निर्देशन और टाइटल्स में दिखने वाले रेखाचित्र- सब सत्यजित राय ने स्वयं बनाए है! यहां तक कि फ़िल्म के एक पात्र के लिए उन्होंने अपनी आवाज़ भी दी है जिसे वसुंधरा सदस्यों को पहचानना था। लेकिन उपस्थित सदस्यों के सभी अंदाज़े फैल होते देख अंततः जितेंद्र भाटिया जी को ही यह गुत्थी सुलझानी पड़ी।
अमेरिका की फ़िल्म अकादमी ने इस फ़िल्म को संरक्षित किया है। लेकिन पूरे पश्चिम में इसका छोटा संशोधित संस्करण ही प्रचलित है, वसुंधरा में इसका मूल 129 मिनट का संस्करण, एक मध्यांतर के साथ दिखाया गया।
यह फिल्म मैं दो तीन बार देख चुका हूं लेकिन फिर से देखना चाहता हूं। अब तक बिना सबटाइटल्स ही देखी है लेकिन इस फिल्म में भाषा कोई बाधा नहीं है, सत्यजित रे की सब फिल्मों की तरह।
– प्रेमचंद गाँधी
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