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जिंदगी के पैंसठ वसंत और पतझरों से गुजरकर देवी नागरानी आज उम्र के उस पड़ाव पर हैं जहाँ पहुँचकर आमतौर शाइरों के पास कहने के लिए लगभग कुछ रह नहीं जाता। वे या तो चूक गए होते हैं या उनमें एक तरह का ठहराव आ जाता है, पर नागरानी जी इसका अपवाद हैं। वे अत्यंत ताजगी और हौसलगी के साथ अपने खट्ठे मीठे अनुभवों को हमसे साझा करती है। यद्यपि उनका दीर्घकालीन एकाकीपन उन्हें अंतर्मुखी अधिक बनाता है, जिसकी एक झलक उनकी गजलों में स्पष्ट दिखाई देती है। परंतु बाह्य जगत से भी उनका नाता जीवंत बना हुआ है। जहाँ वे चीजों, स्थितियों और विशेष रूप से रिश्तों को बहुत गहरी नजर से देखती है। चरागे-दिल में शुरू की अनेक गजलें पहले से मेरी देखी हुई हैं जो वे अमेरिका से भेजा करती थीं। इन्हीं गजलों ने मुझे नागरानी जी को समझने का मौका दिया। मैंने पाया कि वे महसूस करके फिक्र के साथ शेर कहती हैं। उनकी फिक्र में दिल की मामलेदारियों के साथ गमे-जमाना और उसके तमाम मसाइल शेरों में ढलकर ‘रंगे-रुखे-बुताँ’ की तरह हसीन हो जाते हैं क्योंकि वे गम में भी खुशी के पहलू तलाश करना जानती हैं— जिंदगी अस्ल में तेरे गम का नाम सारी खुशियाँ हैं बेकार अगर गम नहीं है। बहुत आजमाया है अपनों को हमने, मुकद्दर ने जब-जब हमें आजमाया। देवी नागरानी के शैर हमें इस कदर अपने विश्वास में लेते हैं कि यकीन करना पड़ता है कि उनकी फिक्री शाइरी का गजल संग्रह ‘चरागे-दिल’ गजल प्रेमियों की फिक्र के उजालों में इजाफा करते हुए तादेर उनके साथ रहेगा।
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