May – September

2024

वसुुंधरा

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7

कबीर जयंती विशेष

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Jan Vasundhara Sahitya Foundation

कबीर वाणी

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥

कबीर

दिनांक 12 मई, रविवार की शाम वसुंधरा मंच पर ‘कबीर वाणी कार्यक्रम’ रखा गया। इस सुंदर कार्यक्रम में पधारे वसुंधरा सदस्यों का स्वागत नीरज गोस्वामी ने किया, तत्पश्चात कार्यक्रम की शुरुआत वसुंधरा मंच के दो महत्वपूर्ण सदस्यों और कबीर को अपने जीवन में सबसे नज़दीक पाने वाले सेंगधीर जी और अमनदीप जी ने की।

सेंगधीर जी ने अपने निजी जीवन में कबीर से जुड़ने के किस्से को साझा करते हुए बताया कि शुरुआती समय में कबीर की पंक्तियां उन्हें केवल सामान्य मोटिवेशनल भर की पंक्तियां लगती थीं। लेकिन जब आपने कुमार गंधर्व की आवाज़ में, “सुनता है गुरुज्ञानी” सुना तो कबीर की ओर गम्भीर रूप से आकर्षित हुए। और जब इसी आकर्षण के चलते आपने कबीर को तमिल में खोजा तो केवल निराशा हाथ लगी लेकिन कबीर ठहरे प्रेरक वक्ता उन्होंने आपको ही तमिल में अनुवाद करने का काम सौंप दिया। इस साधना का परिणाम ये हुआ कि आपने अबतक कबीर पर करीब 100 अनुवाद तमिल में किए।

सेंगधीर जी

तत्पश्चात अमनदीप सिंह कपूर जी ने भी राजस्थान कबीर यात्रा से जुड़ने की कहानी को बड़े रोचक अंदाज़ में बताते हुए कहा; वे 2016 में आईपीएस के ओहदे से उस समय दंगों को रुकवाने बीकानेर पहुँचे थे लेकिन जब दंगे रुक गए और माहौल शांत हुआ तो मुझे बीकानेर जैसे शहर जहां कस्बों के नाम के आगे श्री लगता है (श्री कोलायत, श्री गंगानगर आदि) ऐसे सज्जन लोगों के शहर में दंगे होना स्वीकार नहीं हुआ। आगे उन्होंने बताया कि बीकानेर की लोकायन संस्था द्वारा शुरू की गई एक सार्थक पहल “राजस्थान कबीर यात्रा” को 4 वर्षों के अंतराल के बाद आपने पुलिस के साथ जोड़कर आमजन को कबीर से रूबरू करवाया।

अमनदीप सिंह कपूर

कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए  विशाल विक्रम जी ने  बनारस से पधारे गायक डॉ. गजेन्द्र कुमार पांडेय,  जयपुर की गुलज़ार एकेडमी के संस्थापक वायलिन वादक गुलज़ार हुसैन और तबला वादक मेराज हुसैन का परिचय करवा प्रस्तुति हेतु मंडली को मंच पर आमंत्रित किया।

 विशाल विक्रम

फिर जिस अंदाज में कबीर को गाया गया वो वहाँ बैठे हर सदस्य को मुग्ध कर गया। 2 घंटे के कार्यक्रम में दर्शक झूमकर, ताली बजाकर कबीर में यूँ गुम थें, मानो उन्हें स्वयं की कोई सुध ही न हो। हो भी क्यों…! कुमार गंधर्व को जस का तस गाने वाले गजेंद्र जी बनारस घराने के पंडित अनूप मिश्रा जी से दीक्षित हैं।

( बाएं से दाएं: मेराज हुसैन, गजेंद्र पांडेय, गुलज़ार हुसैन )

 “उड़ जाएगा हंस अकेला से अपने गायन की शुरुआत कर “जरा धीरे गाड़ी हांको, मेरे राम गाड़ी वाले”, “भला हुआ मोरी गगरी फूटी”, माटी कहे कुम्हार से… जैसे एक से बढ़कर एक भजन ईश्वरीय तार से जुड़कर मुक्त कंठ से गाए जा रहे थे। इस मुग्ध कर देने वाली प्रस्तुति को वायलिन वादक गुलजार हुसैन और तबला वादक मेराज हुसैन की तान की संगत और खूबसूरत कर रही थी। वसुंधरा के मंच पर इस त्रयी का कमाल रहा कि ये कार्यक्रम अपने आप में एक अनूठा कार्यक्रम बन गया।

इस विरले कार्यक्रम में पधारे सभी अतिथियों और गायक मंडली के साथ-साथ विशाल विक्रम जी का धन्यवाद जिन्होंने न केवल हमें गजेंद्र जी से मिलवाया बल्कि वसुंधरा मंच की यात्रा में एक अनूठी शाम जोड़ दी। 

शुक्रिया…।

 ~चेतना शर्मा

Post Kabir-Vani

चेतना शर्मा व गजेंद्र पांडेय की बातचीत

बाएं से दाएं: गजेंद्र पांडेय, डॉ. रेखा पांडेय चेतना शर्मा

कार्यक्रम समाप्त होने के पश्चात अनोपचारिक बातचीत में मैंने स्वयं गजेंद्र जी से कबीर से जुड़ने की यात्रा को जानना चाहा उन्होंने बताया कि वे हिंदी साहित्य के विद्यार्थी रहें हैं और कबीर पर एम.फिल. की है। 

जब मैंने उनसे पूछा कि “संगीत के विद्यार्थी न होकर भी कबीर को इतनी सुरीली ढंग से कैसे गाया जा सकता है?” तो जवाब मिला- “मुझे अक्सर लोग संगीत का विद्यार्थी समझ बैठते हैं लेकिन मैं साहित्य का विद्यार्थी हूँ और ‘कबीर की कविता: काव्यरुप और सांगीतिकता’ पर मेरा शोध है। ‘कबीर गायन’ को लेकर मुझे लगता है कि कबीर को गाते वक्त मैं स्वयं को कबीर

की जगह खड़े होकर तत्कालीन परिदृश्य को देखने की कोशिश भर करता हूँ। वह कोशिश ही मुझे कबीर से जोड़ती है।”  मुझे लगा मतलब जितनी बेहतरीन कोशिश, उतना बेहतरीन गायन।

आपको बता दूँ देशभर में कबीर वाणी गाने वाले गजेंद्र जी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, नई दिल्ली, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय, वर्धा, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर, राजीव गांधी विश्वविद्यालय, इटानगर के साथ ताज महोत्सव, खजुराहो महोत्सव जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी अपनी प्रस्तुति दी है।

उड़ जायेगा हँस अकेला

कबीर गीत एवं कविता पाठ

कुमार गंधर्व जब अपनी अनोखी शैली में गाते थें, तब अर्थ न समझते हुए भी हम भावविभोर हो ज़ाया करते थे । काफ़ी बाद में college में आने के बाद हमें बताया गया था कि उनका सिर्फ़ एक ही lung था, और ये शैली इसीलिए विकसित हुई । लेकिन आज इसी शैली में उन्हीं का ये कबीर भजन सुनने को मिला तो भावनाओं का अंबार उमड़ आया।

प्रेम के अनेक रूपों में ये भी एक है जब मौसिकी़ हमें सीधे ईश्वर से मिला देती है और हमारे बीच कोई रस्म-ओ-रिवाज़, कर्मकांड वग़ैरह के बंधन नहीं होते। यही तो भगवान कबीर के लफ़्ज़ों में कहलवा देते हैं न कि ‘ मोको कहॉं ढूँढे रे बंदे , मैं तो तेरे पास में!’

आज बनारस से पधारे हमारे मेहमान ने अपनी सुरीली आवाज़ में कबीर सुनाये। कबीर, कहीं चैती बनकर, तो कहीं कजरी में, कभी भोजपुरी में को कभी राजस्थान की दूरदराज की बोली में, कभी हुबहू तो कभी लोकरूप में ढलकर, हमारे कानों को अपना रसास्वादन कराते रहे और हम उनका साक्षात्कार करते रहे । 

संगत के लिए हमारे अपने सुरीले बेहतरीन वायलिन के उस्ताद गुलज़ार भाई और उन्हीं के छोटे भाई तबले पर , दोनों ने क्या समॉं बॉंध दिया श, वाह! कुल मिलाकर एक बेहद ख़ूबसूरत शाम गुजरी आज । 

 ~ कविता माथुर (वसुंधरा सदस्य) 

Kabir Vani – Manch Member Comments

कमेंट्स कॉर्नर

1. शानदार कार्यक्रम, मुझे भजन बहुत पसंद आया, मैं पूर्वी उत्तर प्रदेश से हूं। अपनी मातृभाषा में भजन सुनने में मजा आ गया। सब भाषा समझ में भी आती है, अपनापन है।

– डॉ. अनीता राकेश (सदस्य)

2. बेहद शानदार कार्यक्रम बहुत-बहुत शुक्रिया इसका हिस्सा बनाने के लिए

– रेणु जुनेजा (सदस्य)

3. “कबीर वाणी” बहुत ही शानदार संगीत प्रोग्राम था सभी श्रोताओं ने कबीर दास जी के दोहो, बचनो, और भजनों का भरपूर आनंद लिया।

– एन. के. मौर्य (सदस्य)

4. कमाल का आयोजन। वसुंधरा मंच के कबीर वाणी कार्यक्रम की गुणवत्ता और आत्मीय आतिथ्य प्रशंसनीय था।

– राघवेंद्र (सदस्य)

5. जितेंद्र भाटिया जी को, चेतना को और नीरज जी को ह्रदय से धन्यवाद, इतने बेहतरीन प्रोग्राम के लिए। यह सच है कि यदि थोड़ा भी कबीर की बातों और ज्ञान को आत्मसात कर लें तो जीवन सफल हो सकता है। धन्यवाद !

– वी.पी.एम. (सदस्य)

6. वसुंधरा मंच” की यात्रा बहुत-बहुत काबिल-तारीफ है। मुझे अच्छी तरह याद है कि कैसे “वसुंधरा मंच” ने निस्वार्थ भाव से बहुत कम दर्शकों के साथ पुरस्कृत फिल्में (अंतर्राष्ट्रीय) दिखाना शुरू किया था और धीरे-धीरे विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करने की ओर अग्रसर हुआ। संगीत, कहानी-कथन, गीतकारों, संगीत गणमान्य व्यक्तियों, कवियों की जीवनी पर मंच प्रस्तुति, और अब कबीर-बानी… 55-60 के करीब दर्शकों के साथ! सलाम…! वसुंधरा मंच के आयोजकों को बहुत-बहुत बधाई, जिसमें जीतेंद्र भाटिया जी, नीरज गोस्वामी जी और प्यारी चेतना का विशेष उल्लेख है। आप लोगों ने न केवल हमें इतनी सारी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित प्रसिद्ध फिल्मों के ज्ञान से समृद्ध किया है, बल्कि उत्सुक पाठकों की प्यास बुझाने के लिए पुस्तकालय भी प्रदान किया है। धन्यवाद.. बहुत-बहुत धन्यवाद

– भगवंत मिन्हास (सदस्य)

बाएं से दाएं: प्रो. विशाल विक्रम, मेराज हुसैन, गजेंद्र पांडेय, गुलज़ार हुसैन, चेतना शर्मा, जितेंद्र भाटिया, नीरज गोस्वामी

Event Time .

जुलाई 14, 2024

.

5:00 अपराह्न

8 A.M Metro

2023 . 1h 56m

– राघवेन्द्र रावत

चौदह जुलाई, 2024 (रविवार) को वसुंधरा मंच द्वारा राज रचकॉंडा द्वारा निर्देशित फ़िल्म 8एएम मेट्रो की स्क्रीनिंग की गई | आमंत्रित दर्शकों के लिए फ़िल्म की स्क्रीनिंग देखना अपने आप में विरत्र अनुभव सिद्ध हुआ | यह फ़िल्म मल्लाड़ी वैंकट कृष्णमूर्ति द्वारा लिखित तेलुगु उपन्यास अंदमिना जीवितं पर आधारित है जिसकी पटकथा राज रचकोंडा, श्रुति भटनागर और असद हुसैन ने लिखी है | 1980 में लिखा यह उपन्यास पहले धारावाहिक के रूप में प्रकाशित हुआ और फिर 2010 में उपन्यास के रूप में प्रकाशित हुआ |

फ़िल्म की कहानी शादीशुदा स्त्री-पुरुष की मित्रता पर आधारित है | फ़िल्म में तीन दंपति की कहानी समानांतर चलती हैं | फ़िल्म शुरू होने के कुछ ही देर बाद बीते हुए कत्न की स्मृतियों में ले जाती है | नायिका जिसे रेल यात्रा का फोबिया है | बचपन में अपने पिता के साथ रेल यात्रा कर रही थी | एक स्टेशन पर गाड़ी बीच में रुकती है और नायिका के पिता चाय लेने उतरते हैं | गाड़ी चल देती है और नायिका के पिता दूसरे डिब्बे में चढ़ जाते हैं और पंद्रह मिनट बाद उसे मित्रते हैं | उन पंद्रह मिनट में जो बाल मन पर गुजरती है वह उसके मन में इस क़दर डर पैदा कर देता है कि वह रेल यात्रा से घबराती है | शादी के बाद उसे अपनी छोटी बहन की गर्भावस्‍था में देखभाल करने के लिए नांदेड़ से हैदराबाद जाना पड़ता है | ट्रेन में चढ़ते ही उसी तबीयत ख़राब होने ल्रगती है | जैसे तैसे वह बहन से मित्रने अस्पताल पहुंचती है | बहन के घर से अस्पताल दूर होने के कारण उसे मेट्रो में यात्रा करनी पड़ती है | मेट्रो में उसका दिल घबराने लगता है, सांस लेने में दिक्कत होने लगती है| फ़िल्म का नायक उसकी इस हालत में मदद करता है | उसकी स्थिति के बारे में अध्ययन करके वह जानने की कोशिश करता है | नायक और नायिका दोनों ही मध्यम वर्गीय परिवार से हैं |

नायिका को बहन की डिलीवरी तक हैदराबाद में रहना पड़ता है और रोज मेट्रो में सफ़र में नायिका- नायक का मिलन होने से वे अच्छे दोस्त बन जाते हैं | स्त्री-पुरुष की पवित्र मित्रता से आगे मनोवैज्ञानिक दबाव से जीतने की कहानी ज्यादा है | कहानी के अंत तक आते-आते बहन की डिलीवरी हो चुकती है | इस बीच नायिका का पति भी एक बार हैदराबाद आता है और नायक के साथ अपनी पत्नी को देख लेता है | प्रेम और विश्वास पति पत्नी के रिश्ते में इतना मजबूत होता है कि वह उस पर किसी तरह का संदेह नहीं करता बल्कि नांदेड़ लौट कर उसे मेसेज करता है कि वह उसे कितना प्रेम करता है और मिस कर रहा है | निश्छल प्रेम की ताक़त को फ़िल्म में मूल्य के रूप में स्थापित किया गया है | नायक नायिका के बीच का प्रेम भी वासना से परे है | निश्छल प्रेम की ताक़त को फ़िल्म में मूल्य के रूप में स्थापित किया गया है | कहानी के अंत में नांदेड़ वापस जाने से पहले जब नायक से मिलने जाती है तब यह रहस्य खुलता है कि नायक की पत्नी और बच्चों की मृत्यु एक हादसे में हो चुकी है और उससे टूट कर जब वह आत्म हत्या करने जा रहा था तभी नायिका से मुलाक़ात ने उसमें फिर से जीने की हिम्मत दी | बहन का पति भी लौट आता है | यह जीवन के दुखद क्षणों में नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर लौटने का बड़ा सन्देश है | कहानी की ताक़त और अभिनय के जरिए निर्देशक दर्शक से तादात्म्य बनाने में सफल हुआ |

फ़िल्म की स्क्रिप्ट बहुत कसी हुई है और इतनी संवेदनशीलता से दृश्य फ़िल्माए गए हैं कि दर्शक को फ़िल्म इस क़दर बांधे रखती है | एक भी फ्रेम दर्शक छोड़ नहीं सकते | हैदराबाद ऐसा शहर है जो पुरातन संस्कृति और आधुनिकता का समन्वय लिए है | फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी की तारीफ करनी होगी जिसने दोनों तस्वीर बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत की हैं | हुसैन सागर हो और उसकी पाल पर बने कैफेटेरिया के प्रणय दृश्य हों या आई. टी क्षेत्र की भव्यता हो या चार मीनार की बुलंदी | बस गोलकोंडा नज़र नहीं आता | नायक नायिका के मिलन के दृश्य सादगी और गरिमा लिए हुए हैं | मनोरोग को कैसे डील किया जाए इसका अच्छा उदाहरण फ़िल्म प्रस्तुत करती है | फ़िल्म उन श्रेष्ठ जीवन मूल्यों की वकालत करती है जो दांपत्य जीवन को खुशहाल बनाते हैं | ऐसे समय में जब स्त्री पुरुष के संबंध बहुत खतरे में हैं, आपसी समझ और विश्वास का अभाव रिश्तों में टूटन पैदा कर रहा है तब ऐसी फ़िल्म और भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं | नायिका की भूमिका में सैयामी खेर तथा नायक की भूमिका में गुलशन देवैयः ने कमाल का अभिनय किया है | नायिका के पति के रूप में संदीप भारद्वाज ने भी अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है | चेहरे के भावों से कहने की कला को बखूबी प्रस्तुत करके अभिनय की श्रैष्ठता प्रदर्शित की है | कौसर मुनीर के गीत अच्छे हैं और गुलज़ार की शायरी का इस्तेमाल भी अच्छे ढंग से किया गया है | मार्क के रोबिन का संगीत फ़िल्म ठीक-ठाक है | लेकिन कहीं-कहीं लाउड होने की वजह से संवाद दब जाते हैं ऐसा कई दर्शकों को अनुभव हुआ |

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