Vasundhara

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Event Time .

July 14, 2024

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5:00 pm

8 A.M Metro

2023 . 1h 56m

– राघवेन्द्र रावत

चौदह जुलाई, 2024 (रविवार) को वसुंधरा मंच द्वारा राज रचकॉंडा द्वारा निर्देशित फ़िल्म 8एएम मेट्रो की स्क्रीनिंग की गई | आमंत्रित दर्शकों के लिए फ़िल्म की स्क्रीनिंग देखना अपने आप में विरत्र अनुभव सिद्ध हुआ | यह फ़िल्म मल्लाड़ी वैंकट कृष्णमूर्ति द्वारा लिखित तेलुगु उपन्यास अंदमिना जीवितं पर आधारित है जिसकी पटकथा राज रचकोंडा, श्रुति भटनागर और असद हुसैन ने लिखी है | 1980 में लिखा यह उपन्यास पहले धारावाहिक के रूप में प्रकाशित हुआ और फिर 2010 में उपन्यास के रूप में प्रकाशित हुआ |

फ़िल्म की कहानी शादीशुदा स्त्री-पुरुष की मित्रता पर आधारित है | फ़िल्म में तीन दंपति की कहानी समानांतर चलती हैं | फ़िल्म शुरू होने के कुछ ही देर बाद बीते हुए कत्न की स्मृतियों में ले जाती है | नायिका जिसे रेल यात्रा का फोबिया है | बचपन में अपने पिता के साथ रेल यात्रा कर रही थी | एक स्टेशन पर गाड़ी बीच में रुकती है और नायिका के पिता चाय लेने उतरते हैं | गाड़ी चल देती है और नायिका के पिता दूसरे डिब्बे में चढ़ जाते हैं और पंद्रह मिनट बाद उसे मित्रते हैं | उन पंद्रह मिनट में जो बाल मन पर गुजरती है वह उसके मन में इस क़दर डर पैदा कर देता है कि वह रेल यात्रा से घबराती है | शादी के बाद उसे अपनी छोटी बहन की गर्भावस्‍था में देखभाल करने के लिए नांदेड़ से हैदराबाद जाना पड़ता है | ट्रेन में चढ़ते ही उसी तबीयत ख़राब होने ल्रगती है | जैसे तैसे वह बहन से मित्रने अस्पताल पहुंचती है | बहन के घर से अस्पताल दूर होने के कारण उसे मेट्रो में यात्रा करनी पड़ती है | मेट्रो में उसका दिल घबराने लगता है, सांस लेने में दिक्कत होने लगती है| फ़िल्म का नायक उसकी इस हालत में मदद करता है | उसकी स्थिति के बारे में अध्ययन करके वह जानने की कोशिश करता है | नायक और नायिका दोनों ही मध्यम वर्गीय परिवार से हैं |

नायिका को बहन की डिलीवरी तक हैदराबाद में रहना पड़ता है और रोज मेट्रो में सफ़र में नायिका- नायक का मिलन होने से वे अच्छे दोस्त बन जाते हैं | स्त्री-पुरुष की पवित्र मित्रता से आगे मनोवैज्ञानिक दबाव से जीतने की कहानी ज्यादा है | कहानी के अंत तक आते-आते बहन की डिलीवरी हो चुकती है | इस बीच नायिका का पति भी एक बार हैदराबाद आता है और नायक के साथ अपनी पत्नी को देख लेता है | प्रेम और विश्वास पति पत्नी के रिश्ते में इतना मजबूत होता है कि वह उस पर किसी तरह का संदेह नहीं करता बल्कि नांदेड़ लौट कर उसे मेसेज करता है कि वह उसे कितना प्रेम करता है और मिस कर रहा है | निश्छल प्रेम की ताक़त को फ़िल्म में मूल्य के रूप में स्थापित किया गया है | नायक नायिका के बीच का प्रेम भी वासना से परे है | निश्छल प्रेम की ताक़त को फ़िल्म में मूल्य के रूप में स्थापित किया गया है | कहानी के अंत में नांदेड़ वापस जाने से पहले जब नायक से मिलने जाती है तब यह रहस्य खुलता है कि नायक की पत्नी और बच्चों की मृत्यु एक हादसे में हो चुकी है और उससे टूट कर जब वह आत्म हत्या करने जा रहा था तभी नायिका से मुलाक़ात ने उसमें फिर से जीने की हिम्मत दी | बहन का पति भी लौट आता है | यह जीवन के दुखद क्षणों में नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर लौटने का बड़ा सन्देश है | कहानी की ताक़त और अभिनय के जरिए निर्देशक दर्शक से तादात्म्य बनाने में सफल हुआ |

फ़िल्म की स्क्रिप्ट बहुत कसी हुई है और इतनी संवेदनशीलता से दृश्य फ़िल्माए गए हैं कि दर्शक को फ़िल्म इस क़दर बांधे रखती है | एक भी फ्रेम दर्शक छोड़ नहीं सकते | हैदराबाद ऐसा शहर है जो पुरातन संस्कृति और आधुनिकता का समन्वय लिए है | फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी की तारीफ करनी होगी जिसने दोनों तस्वीर बहुत खूबसूरती से प्रस्तुत की हैं | हुसैन सागर हो और उसकी पाल पर बने कैफेटेरिया के प्रणय दृश्य हों या आई. टी क्षेत्र की भव्यता हो या चार मीनार की बुलंदी | बस गोलकोंडा नज़र नहीं आता | नायक नायिका के मिलन के दृश्य सादगी और गरिमा लिए हुए हैं | मनोरोग को कैसे डील किया जाए इसका अच्छा उदाहरण फ़िल्म प्रस्तुत करती है | फ़िल्म उन श्रेष्ठ जीवन मूल्यों की वकालत करती है जो दांपत्य जीवन को खुशहाल बनाते हैं | ऐसे समय में जब स्त्री पुरुष के संबंध बहुत खतरे में हैं, आपसी समझ और विश्वास का अभाव रिश्तों में टूटन पैदा कर रहा है तब ऐसी फ़िल्म और भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं | नायिका की भूमिका में सैयामी खेर तथा नायक की भूमिका में गुलशन देवैयः ने कमाल का अभिनय किया है | नायिका के पति के रूप में संदीप भारद्वाज ने भी अपनी भूमिका के साथ न्याय किया है | चेहरे के भावों से कहने की कला को बखूबी प्रस्तुत करके अभिनय की श्रैष्ठता प्रदर्शित की है | कौसर मुनीर के गीत अच्छे हैं और गुलज़ार की शायरी का इस्तेमाल भी अच्छे ढंग से किया गया है | मार्क के रोबिन का संगीत फ़िल्म ठीक-ठाक है | लेकिन कहीं-कहीं लाउड होने की वजह से संवाद दब जाते हैं ऐसा कई दर्शकों को अनुभव हुआ |

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