Your cart is currently empty!
Event Time .
सितम्बर 1, 2024
.
5:00 अपराह्न
2023 . 1h 56m
हम एक अरसे से विश्व और भारतीय सिनेमा की चुनी हुई कृतियाँ आपको दिखाते रहे हैं और हमारे मन में रहा है कि सिनेमा के इतिहास के उस हिस्से को पेश करें जिससे हम बहुत परिचित नहीं हैं!
आप सब ने मेरे शैलेन्द्र और सत्यजित राय के ऑडियो-विज़ुअल कार्यक्रमों को काफी पसंद किया था और मैंने इन्हें देश के कई शहरों में भी दिखाया है!
मुझे बताते हुए खुशी है कि वसुंधरा के नए सत्र की शुरुआत हम सिने-इतिहास के उस दौर से कर रहे हैं जिसके बारे में हम सबकी जानकारी सीमित है।
यानी सिनेमा का आरंभ और हमारा मूक सिनेमा 1890-1930 के बीच।
इसकी शुरुआत मैं विशेष रूप से बनाए ऑडियो-विज़ुअल प्रजेंटेशन से करूँगा, जो इस दौर के सिनेमा का एक मुकम्मल चित्र पेश करेगा।
इसके साथ ही हम आपको दिखाएंगे इस दौर की श्रेष्ठतम मूक फ़िल्म ‘शिराज़’ (1928) जिसे ब्रिटिश फ़िल्म संस्थान ने विशेष रूप से digitalise कर इसे अनुष्का शंकर के संगीत से सजाया है, हाल ही में! संभवतः जयपुर में मूक सिनेमा के अवलोकन के साथ यह विशिष्ट फ़िल्म हम पहली बार दिखाएंगे।
‘शिराज़’ हिमांशु राय-निरंजन पाल और जर्मन निर्देशक फ्रांज़ ओस्टेन की विशुध्द भारतीय फिल्म है जो ताजमहल के बनाए जाने पर आधारित कथा को दिलचस्प ढंग से पेश करती है और इसे विश्व की सबसे विकसित मूक फिल्मों में गिना जाता है!
इसके अतिरिक्त मेरे प्रस्तुतीकरण में आप भारत की पहली फ़िल्म ‘राजा हरिश्चन्द्र’ और चुनी हुई अन्य फिल्मों के अंश भी देखेंगे।
हमने बहुत मेहनत से इस कार्यक्रम को बनाया है– आइए, हमारे साथ सिनेमा के इस दिलचस्प इतिहास को बांटिए।
तय करना मुश्किल हो रहा है कि फ़िल्म ज़ियादा बढ़िया थी या प्रजेन्टेशन। इस लाजवाब प्रेजेन्टेशन के लिए आपको सलाम भाटिया जी ।-
Research is an elixir to rid oneself of ignorance. In an era when Akbar is to be banished from school texts and Gobar-Gau Mootr is to be the only intellectual stimulant of the fundamentalists, the need for scholarly lectures is an important dose for our “fact starved society”. Thankfully, Vasundhara has always striven to be different so as to provide nourishment to the mind and spirit and as such, the Brief History of Silent Era Movies was another fine session in its legacy. All thanks to Jitendra Bhatia ji… once a teacher, always a teacher. His in-depth exposition of the art of film was a pain-staking effort at making things lucid and clear for every layman. That “Shiraaz” came as the icing on the cake was, of course, a pointer to his intellectual prowess.
It was indeed gratifying to see the wonderful camerawork and editing at such an infantile stage of film making, leaving you in no doubt that talent existed in every era even though the recognition may not have been in commensuration with their efforts. For all the so called branding of superstars, I think the real “STELLAR STARS” were the pioneers who took risks and laid the rules of film grammar, technique and foundations of film making. Hats off to Himanshu Rai, Devika Rani, Franz Osten and Niranjan Pal and many of their ilk who led us to such a golden path of artistic voyage and fulfillment.
What was immensely pleasing was to identify ramparts of Amer, City palace, Old Legislative Assembly, Vidyadhar Bagh and several other monuments of Jaipur in the various scenes. Despite its length, the film was pretty engaging. The flaws, apart from length, were the addition of extensive musical pieces music by the BFI restoration team and several mistake in spelling whereby, in credits, Cast was spelt as CASTE! Nevertheless, it was a fine monsoon evening that was very well spent. Kudos Bhatia Ji, Neeraj Goswamy and the cherubic Chetna!
Loved Jitendra ji’s presentation on Silent Cinema in the Indian context. Discovered a number of interesting pieces of information – Some made me happy, while others were not so pleasant.
Luminaries such as Dada Saheb Phalke, Himanshu Roy, Niranjan Paul, and many others were incredibly ahead of their time. Their achievements are truly breathtaking, considering the newness of technology, limited funding, and non-existent distribution channels they had to work with. Despite these challenges, they managed to overcome them spectacularly. Within just two decades, the subjects and storylines in Indian cinema evolved rapidly, transitioning from mythology to love ballads and eventually incorporating political overtones. These changes were so significant that the British government had to introduce censorship laws.
The movie SHIRAZ, which came after, also managed to captivate everyone. Its compelling narrative, lavish sets, and intriguing story arc were truly impressive. Even after a century, most contemporary films would pale in comparison, if we disregard the technological advancements (color film, sound mixing etc.) that are now readily accessible.
The fact that a small percent of this legacy survives is something to bemoan. And hopefully in future the discussion will raise some sharp questions to the politicians/custodians who puff up their chest talking about India’s rich heritage, blah blah blah.
Hats off to Neeraj ji and Chetna for pulling everything off for the Vasundhara kutumb.
Just a word of caution, if this trend continues, we will soon need an indoor football stadium to accommodate the growing number of viewers!
मूक फिल्म ‘शिराज़’ को फिर देखा
गंभीर सिनेमा की समझ बढ़ाने के लिए सुधि लोग बड़े चाव से वसुंधरा समूह में जाते हैं जहां प्रगतिशील विचारों वाले लेखक जितेंद्र भाटिया साहिब दुर्लभ फिल्में दिखाते हैं। कल शाम उन्होंने हिमांशु राय की 1928 की मूक फिल्म ‘शिराज़’ प्रदर्शित की। इस फिल्म को 2017 में ब्रिटिश फिल्म इंस्टीट्यूट ने restore करके नया जीवन दिया जो अब उन इनी गिनी भारतीय मूक फिल्मों में एक है जो संरक्षित रह पाई है।
यह फिल्म जर्मन और भारतीय लोगों के सहकार के साथ ही भारतीय फिल्मों के अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन का शुरुआती उदाहरण भी है। यह फिल्म हम पहले भी अनेक बार देख चुके हैं। मगर ऐसी विरासतों को फिर फिर देखने से भी मन नहीं भरता।
जर्मन निर्देशक फ्रैंज़ ऑस्टिन, भारतीय निर्माता अभिनेता हिमांशु राय तथा ब्रिटेन फिल्म उद्योग में फिल्में लिख रहे लेखक निरंजन पॉल की तिगड़ी ने Light of Asia, Shiraz और Throw of Dice तीन महान मूक फिल्में बनाई।
ब्रिटिश फिल्म इंस्टीट्यूट (बीएफआई) आर्काइव द्वारा पूरी तरह से बहाल करने के बाद अक्टूबर 2017 में बार्बिकन, लंदन में लंदन फिल्म फेस्टिवल में प्रीमियर के दौरान सितार वादक रविशंकर की बेटी अनुष्का शंकर को फिल्म में लाइव संगीत देने का जाप दिया गया था। इसके बाद इसे भारत के एक संक्षिप्त लाइव दौरे पर लाया गया, जहां अनुष्का और संगीतकारों ने पांच भारतीय शहरों में इसकी स्क्रीनिंग के साथ लाइव बजाया था जैसा कि मूक फिल्मों के प्रदर्शन के ज़माने में होता था।
इस फिल्म को फिर ब्रिटेन में सिनेमा स्क्रीनिंग के लिए अनुष्का शंकर के म्यूजिकल स्कोर के साउंड ट्रैक के साथ रिलीज किया गया जो DVD और Blue Ray पर भी बाजार में उपलब्ध कराया गया। अब यह यूट्यूब पर भी उपलब्ध है।
कल भी वसुंधरा में भाटिया साहिब ने यह फिल्म सितार और तबले तथा अन्य वाद्यों के पृष्ठभूमि संगीत से सरोबार साउंड ट्रैक के साथ प्रदर्शित की।
हम उन लोगों में से हैं जो विरासत की चीजों से छेड़छाड़ करना पसंद नहीं करते। मूक फिल्म में ध्वनि जोड़ना उसकी पवित्रता को नष्ट करना ही हम मानेंगे। अनुष्का के सितार की झंकार और उनके साथ में तबले की थाप कितनी ही प्रभावी क्यों न मान ली जाए उससे यह मूक फिल्म silent film से sound film बन गई, भले ही उसमें संवाद सुनाई न देते हों।
कह सकते हैं कि जोड़ा गया संगीत से ही आज के दर्शकों को दो घंटे बांधे रखा जा सकता है मगर उससे मूक फिल्म का अनुभव खत्म हो जाता है। खैर यह तो हमारे निजी विचार हैं जिन्हें हम पुरानी श्याम-श्वेत फिल्मों को रंगीन करने पर भी व्यक्त करते रहे हैं।
Hello Team Vasundhara,
Shiraj was one of the best cinematic experiences I’ve had It was so engrossing. So well made. Had all the ingredients of a great movie. Just thrilled to have seen it. Our best wishes to Vasundhara Team. Keep giving us more gems like these. Thanks again 🙏🙏
Thank you for your views. We are privileged to have such sensitive and involved viewership for our programmes.
In future, we will do another programme on the advent of talkies along with an outstanding representative film from that era.
As always, our team is humbled by your overwhelming response and your thought provoking comments. Thank you one and all !!
Thank you very much. It was my first visit to Vasundhara. I found it very rewarding. -sunny sebastian
A vibrant bookstore offering a diverse selection of books in Hindi, English, and Marathi, focusing on classics and contemporary writing from Indian and international authors, covering literature, arts, environment, and more.
101/Basement,
Varuni Apartments,
285-286 Aadarsh Nagar,
Jaipur – 302004
141 – 314 2541
11:00 AM – 5:00 PM
602 Gateway Plaza,
Hiranandani Gardens,
Powai, Mumbai – 400076
022 – 2570 5857
022 – 3502 5720
Mon – Fri
11:00 AM – 6:00 PM
Sat – Sun
12:00 AM – 5:00 PM