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किताबों की दुनिया
सशक्त गद्यकार एवं तकनीकी जगत के जाने माने व्यक्तित्व जितेन्द्र भाटिया इस पुस्तक में पहली बार विज्ञान की पक्षधरता एवं उसकी सामाजिक-सांस्कृतिक भूमिका को लेकर वे सारे असुविधाजनक और विचारोत्तेजक यक्ष-प्रश्न उठा रहे हैं, जिनसे यह सदी बचकर निकलती रही है, लेकिन जिनके उत्तर तलाशे बगैर इस यांत्रिक सभ्यता को पत्थरों का संसार बनने से बचाना शायद असंभव होगा. सदी के ये प्रश्न शायद हमारे वक्त के सबसे ज़रूरी और अहम सवाल हैं. “Cuts the cobwebs of jargon surrounding globalisation and liberalisation effectively. May be of interest even to those who do not usually read Hindi”–Tribune
₹250.00